Zikr lyrics

by

Armaan Malik


होने लगा इस तरह
मेरी गलती है
दिल को रोका तो ये
ज़ुबाँ चलती है
इश्क को मैंने बड़ा समझाया
इश्क के आगे कहाँ चलती है
तेरा ना करता ज़िक्र
तेरा ना होती फ़िक्र
तेरे लिये दिल रोता ना कभी
यूँ ना बहाता अश्क
मैं भी मनाता जश्न
खुद के लिये भी जीता ज़िंदगी

बाखुदा दिल गया
बाखुदा दिल गया...
तेरा ना करता ज़िक्र..

जिस्म से तेरे मिलने दे मुझे
बेचैन ज़िन्दगी इस प्यार में थी
उँगलियों से तुझपे लिखने दे ज़रा
शायरी मेरी इंतज़ार में थी
मुझपे लुटा दे इश्क
मुझको सिखा दे इश्क
किस्मत मेरे दर आ गया जो तू
मुझको जगाये रख
खुद में लगाये रख
के रातभर मैं अब ना सो सकूँ
तेरा ना करता ज़िक्र
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